छंद की परिभाषा, भेद और उदाहरण | Chhand in hindi – 2023

chhand in hindi

Here’s a rewrite for Chhand in Hind:

छंद का अर्थ है ताल या लय. छंद का उपयोग कविता में किया जाता है ताकि कविता को सुंदर और प्रभावी बनाया जा सके. छंद के कई प्रकार हैं.

हिंदी व्याकरण का एक और बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक छंद है. छंद का अर्थ है ताल या लय. छंद का उपयोग कविता में किया जाता है ताकि कविता को सुंदर और प्रभावी बनाया जा सके. छंद के कई प्रकार हैं, जिनमें से कुछ सबसे लोकप्रिय हैं:

  • वर्णिक छंद: वर्णिक छंद में, कविता की पंक्तियों में वर्णों की संख्या समान होती है.
  • मात्रिक छंद: मात्रिक छंद में, कविता की पंक्तियों में मात्राओं की संख्या समान होती है.
  • मुक्त छंद: मुक्त छंद में, कविता की पंक्तियों में वर्णों या मात्राओं की संख्या समान नहीं होती है.

छंद का उपयोग कविता को सुंदर और प्रभावी बनाने के लिए किया जाता है. छंद कविता को एक ताल और लय देता है, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है. छंद कविता को अधिक भावपूर्ण भी बना सकता है, क्योंकि यह कविता को एक निश्चित गति और गति प्रदान करता है.

छंद का उपयोग कविता को एक निश्चित संरचना भी देता है. छंद कविता को एक निश्चित क्रम में पंक्तियों को व्यवस्थित करने में मदद करता है, जो कविता को अधिक सुंदर और प्रभावी बनाता है.

छंद का उपयोग कविता को एक निश्चित अर्थ भी देता है. छंद कविता के शब्दों और वाक्यों को एक निश्चित तरीके से व्यवस्थित करने में मदद करता है, जो कविता को एक निश्चित अर्थ देता है.

छंद का उपयोग कविता को एक निश्चित प्रभाव भी देता है. छंद कविता के पाठकों पर एक निश्चित प्रभाव डाल सकता है, जो कविता को अधिक सुंदर और प्रभावी बनाता है.

छंद एक शक्तिशाली tool है जिसका उपयोग कविता को सुंदर, प्रभावी, संरचित, अर्थपूर्ण और प्रभावशाली बनाया जा सकता है.

Table of Contents

छंद की परिभाषा (Chhand ki Paribhasha)

यहां छंद शब्द का पुनर्लेखन है:

छंद शब्द संस्कृत भाषा के ‘चंद्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘आह्लादित (प्रसन्न) करना’ या ‘खुश करना’. छंद को ‘पिंगल’ भी कहा जाता है, जो संस्कृत भाषा के ‘पिंगल’ ऋषि के नाम पर रखा गया है. पिंगल ऋषि को छंद शास्त्र के आदि प्रणेता माना जाता है.

छंद शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘बन्धन’. यह शब्द वर्ण, मात्रा, विराम, गति (लय) एवं तुक आदि नियमों पर आधारित शब्द रचना को इंगित करता है. छंद का उपयोग कविताओं में किया जाता है ताकि कविता को सुंदर और प्रभावी बनाया जा सके. छंद कविता को एक ताल और लय देता है, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है. छंद कविता को अधिक भावपूर्ण भी बना सकता है, क्योंकि यह कविता को एक निश्चित गति और गति प्रदान करता है.

छंद शब्द का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है. छंद शास्त्र को पिंगल शास्त्र भी कहा जाता है क्योंकि इसके आदि प्रणेता आचार्य पिंगल ऋषि माने जाते हैं. छंद शास्त्र में छंदों के विभिन्न प्रकारों के बारे में बताया गया है. छंदों के विभिन्न प्रकारों को उनके वर्ण, मात्रा, विराम, गति (लय) एवं तुक आदि के आधार पर वर्गीकृत किया गया है.

छंद का कविता में बहुत महत्व है. छंद कविता को सुंदर और प्रभावी बनाता है. छंद कविता को एक ताल और लय देता है, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है. छंद कविता को अधिक भावपूर्ण भी बना सकता है, क्योंकि यह कविता को एक निश्चित गति और गति प्रदान करता है.

छंद एक शक्तिशाली tool है जिसका उपयोग कविता को सुंदर, प्रभावी, संरचित, अर्थपूर्ण और प्रभावशाली बनाया जा सकता है.

छंद का अर्थ | Meaning of verses


यहां छंद शब्द के विभिन्न विद्वानों के अनुसार पुनर्लेखन है:

  • डॉ जगदीश गुप्त (हिंदी साहित्य कोश) के अनुसार: छंद शब्द का अर्थ है अक्षरों और मात्राओं की एक निश्चित योजना के आधार पर रचित कविता.
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार: छंद शब्द का अर्थ है छोटी-छोटी सार्थक ध्वनियों के प्रवाह पूर्ण संगति.
  • अज्ञेय के अनुसार: छंद शब्द का अर्थ है भाषा की गति को नियंत्रित करने वाली योजना.

छंद काव्य के प्रवाह को लय युक्त, संगीतात्मक, सुव्यवस्थित और नियोजित करता है. छंदबध्द होकर भाव अधिक प्रभावशाली, अधिक हदय ग्राही और स्थाई हो जाता है. छंद काव्य को स्मरण योग्य बना देता है. अर्थात् छंदों के सभी चरणों में वर्णों या क्रमों अथवा मात्राओं की संख्या निश्चित होती है.

छंद का कविता में बहुत महत्व है. छंद कविता को सुंदर और प्रभावी बनाता है. छंद कविता को एक ताल और लय देता है, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है. छंद कविता को अधिक भावपूर्ण भी बना सकता है, क्योंकि यह कविता को एक निश्चित गति और गति प्रदान करता है.

छंद एक शक्तिशाली tool है जिसका उपयोग कविता को सुंदर, प्रभावी, संरचित, अर्थपूर्ण और प्रभावशाली बनाया जा सकता है.

छंद के अंग | Parts of verse

छंद के मुख्य रूप से सात अंग होते हैं:

  1. चरण/पद/पाद: एक चरण, पद या पाद एक छंद का एक भाग होता है. एक चरण में निश्चित संख्या में वर्ण और मात्राएँ होती हैं.
  2. वर्ण और मात्रा: वर्ण एक भाषा की सबसे छोटी ध्वनि इकाई होती है. मात्रा एक वर्ण के उच्चारण में लगने वाले समय को मापती है.
  3. संख्या/क्रम: एक छंद में चरणों की संख्या और चरणों में वर्ण और मात्राओं का क्रम निश्चित होता है.
  4. गण: एक गण एक वर्ण या मात्राओं का समूह होता है. एक छंद में चरणों में गणों का एक निश्चित क्रम होता है.
  5. गति (लय): एक छंद की गति उसके चरणों में वर्ण और मात्राओं के उच्चारण की गति होती है.
  6. विराम/यति: एक छंद में चरणों के बीच विराम होते हैं. ये विराम छंद को सुंदर और प्रभावी बनाते हैं.
  7. तुक: एक छंद में चरणों के अंत में आने वाले शब्दों के मिलान को तुक कहते हैं. तुक छंद को सुंदर और प्रभावी बनाते हैं.

छंद का उपयोग कविता में किया जाता है ताकि कविता को सुंदर और प्रभावी बनाया जा सके. छंद कविता को एक ताल और लय देता है, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है. छंद कविता को अधिक भावपूर्ण भी बना सकता है, क्योंकि यह कविता को एक निश्चित गति और गति प्रदान करता है.

छंद एक शक्तिशाली tool है जिसका उपयोग कविता को सुंदर, प्रभावी, संरचित, अर्थपूर्ण और प्रभावशाली बनाया जा सकता है.

(1). चरण/पद/पाद

एक छंद को चरणों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें पद या पाद भी कहा जाता है. एक छंद में आमतौर पर चार चरण होते हैं, जो आमतौर पर चार पंक्तियों में लिखे जाते हैं. हालांकि, एक छंद में चार से अधिक चरण भी हो सकते हैं.

अधिकतर छंदों में एक चरण एक पंक्ति में लिखा जाता है. हालांकि, कुछ छंदों में दो-दो चरण मिलाकर एक पंक्ति में लिखे जाते हैं, जैसे- दोहा और सोरठा. दो चरणों से मिली हुई एक पंक्ति को ‘दल’ कहा जाता है. इसलिए, कुछ छंदों में छह चरण भी होते हैं, जैसे- छप्पय और कुंडलियाँ.

चरण दो प्रकार के होते हैं:

  • विषम चरण – छंद के पहले और तीसरे चरण को ‘विषम चरण’ कहा जाता है.
  • सम चरण – छंद के दूसरे और चौथे चरण को ‘सम चरण’ कहा जाता है.

(2). वर्ण और मात्रा

  • वर्ण: एक भाषा की सबसे छोटी ध्वनि इकाई को वर्ण कहा जाता है. वर्ण को अक्षर भी कहते हैं.
  • मात्रा: वर्णों के उच्चारण काल को मापने की सबसे छोटी इकाई को मात्रा कहा जाता है. किसी स्वर का उच्चारण करने में जितना समय लगता है, उसे एक मात्रा काल कहते हैं.

मात्राओं के आधार पर वर्णों (स्वरों) के भेद:

  • हास्व स्वर (लघु स्वर): जिस स्वर के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है, उसे हास्व स्वर या लघु स्वर कहते हैं. हिंदी में चार हास्व स्वर हैं: अ, इ, उ, ऋ.
  • दीर्घ स्वर (गुरु स्वर): जिस स्वर के उच्चारण में दो मात्रा अर्थात् हास्व से दोगुना का समय लगता है, उसे दीर्घ स्वर या गुरु स्वर कहते हैं. हिंदी में आठ दीर्घ स्वर हैं: आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ.

लघु व गुरु वर्ण का परिचय:

  • लघु वर्ण: हास्व स्वर को छंद शास्त्र में लघु कहते हैं. लघु वर्ण की एक मात्रा गिनी जाती है.
  • गुरु वर्ण: दीर्घ स्वर को छंद शास्त्र में गुरु कहते हैं. गुरु वर्ण की दो मात्राएं गिनी जाती हैं.

लघु और गुरु वर्ण का प्रतीक चिन्ह:

  • लघु वर्ण: लघु वर्ण के लिए (I) चिन्ह तथा गुरु वर्ण के लिए (S) चिन्ह लगाया जाता है. जैसे- क (I), था (S) व मा (S), न (I).

(3). संख्या/क्रम

यहां वर्णों और मात्राओं की गणना और लघु-गुरु के स्थान निर्धारण का पुनर्लेखन है:

  • वर्णों और मात्राओं की गणना: एक छंद में वर्णों और मात्राओं की संख्या को गणना कहा जाता है.
  • लघु-गुरु के स्थान निर्धारण: एक छंद में लघु और गुरु वर्णों के स्थान को क्रम कहा जाता है.

मात्रिक छंदों में केवल मात्राओं की संख्या का नियम होता है, जबकि वर्णिक छंदों में वर्णों की संख्या का नियम होता है. वर्णिक छंदों में लघु और गुरु वर्णों का एक निश्चित क्रम भी होता है. वर्णों का क्रम गणों द्वारा सूचित किया जाता है.

गण एक वर्ण या मात्राओं का समूह होता है. एक छंद में गणों का एक निश्चित क्रम होता है. गण छंद को एक ताल और लय देता है, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है.

(4). गण

यहां गण और यमाताराजभानसलगा सूत्र का पुनर्लेखन है:

  • गण: एक गण तीन वर्णों का समूह होता है. वर्णिक छंदों में गणों की गणना की जाती है.
  • यमाताराजभानसलगा सूत्र: यह एक सूत्र है जो गणों को याद रखने में मदद करता है. इस सूत्र में आठ गण हैं: यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण और सगण.

इस सूत्र का उपयोग करके गणों को प्राप्त करने के लिए, आप सूत्र में से प्रत्येक अक्षर के लिए एक गण ले सकते हैं. उदाहरण के लिए, “य” अक्षर के लिए यगण, “म” अक्षर के लिए मगण, और इसी तरह.

यहां गणों की सूची है, जिन्हें यमातारजाभानसलगा सूत्र से प्राप्त किया जा सकता है:

  • यगण: (लघु गुरु लघु)
  • मगण: (गुरु लघु लघु)
  • तगण: (लघु लघु गुरु)
  • रगण: (गुरु गुरु लघु)
  • जगण: (लघु गुरु गुरु)
  • भगण: (गुरु लघु गुरु)
  • नगण: (लघु लघु लघु)
  • सगण: (गुरु गुरु गुरु)

गण छंद को एक ताल और लय देते हैं, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है.

गण का नामसंकेतसूत्रगत उदाहरणसार्थक उदाहरण
यगणISSयमातायशोदा
मगणSIIमातारामायावी
तगणSSIताराजतालाब
रगणSISराजभारामजी
जगणISIजभानजलेश
भगणSSSभानसभारत
नगणIIIनसलनगर
सगणIISसलगासरिता

(5). गति (या लय)

  • गति: कविता के पढ़ने के प्रवाह को ही गति कहते हैं.
  • प्रवाह: छंदों में मधुरता लाने के लिए एक प्रकार का प्रवाह होना आवश्यक है. गति या प्रवाह से हमारा तात्पर्य लयपूर्ण पाठ-प्रवाह से है जिससे पढ़ने में किसी प्रकार की रुकावट न हो.

गति छंद को एक ताल और लय देता है, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है. गति के बिना, कविता पढ़ना मुश्किल और अरुचिकर हो सकता है.

गति को प्राप्त करने के लिए, कवि को शब्दों और वाक्यों को इस तरह से व्यवस्थित करना चाहिए कि वे एक सहज और सुंदर ताल बनाते हों. कवि को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कविता के विभिन्न भागों में गति का स्तर अलग-अलग हो सकता है. उदाहरण के लिए, एक कविता का आरंभिक भाग आमतौर पर धीमा और गंभीर होता है, जबकि अंतिम भाग आमतौर पर तेज और उत्साही होता है.

गति एक महत्वपूर्ण तत्व है जो एक कविता को सुंदर और प्रभावशाली बनाता है.

(6). यति/विराम

  • यति: किसी छंद के चरण को पढ़ते समय बीच में जहां कहीं रुक कर विश्राम किया जाता है, उसे यति कहते हैं.
  • विराम: किसी छंद में विराम या रुकने के स्थल को ही विराम कहते हैं.

यति छंद को एक ताल और लय देता है, जो कविता को पढ़ने और सुनने में अधिक सुखद बनाता है. यति के बिना, कविता पढ़ना मुश्किल और अरुचिकर हो सकता है.

यति को प्राप्त करने के लिए, कवि को शब्दों और वाक्यों को इस तरह से व्यवस्थित करना चाहिए कि वे एक सहज और सुंदर ताल बनाते हों. कवि को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कविता के विभिन्न भागों में यति का स्तर अलग-अलग हो सकता है. उदाहरण के लिए, एक कविता का आरंभिक भाग आमतौर पर धीमा और गंभीर होता है, जबकि अंतिम भाग आमतौर पर तेज और उत्साही होता है.

यति एक महत्वपूर्ण तत्व है जो एक कविता को सुंदर और प्रभावशाली बनाता है.

यति के दो प्रकार हैं:

  • लघु यति: चरण के बीच में जहां थोड़ी देर रुका जाता है वहां ‘,’ अल्पविराम चिन्ह लगाया जाता है.
  • पूर्ण यति: चरण के अंत में जहां कुछ अधिक देर रुका जाता है वहां ‘।’ पूर्णविराम चिन्ह लगाया जाता है.

(7). तुक

  • तुक: किसी चरण के अंत में आने वाले समान वर्णों को ही तुक कहते हैं.

तुक छंद को एक सुंदर और प्रभावशाली बनाता है. तुक के बिना, कविता पढ़ना मुश्किल और अरुचिकर हो सकता है.

तुक के दो प्रकार हैं:

  • तुकांत छंद: जिन छंदों के अंत में तुक हो, उन्हें तुकांत छंद कहते हैं.
  • अतुकांत छंद: जिन छंदों के अंत में तुक न हो, उन्हें अतुकांत छंद कहते हैं.

तुकांत छंदों में, चरण के अंत में आने वाले वर्णों की संख्या और स्वर एक समान होते हैं. उदाहरण के लिए, दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, गीतिका आदि छंद तुकांत छंद हैं.

अतुकांत छंदों में, चरण के अंत में आने वाले वर्णों की संख्या और स्वर एक समान नहीं होते हैं. उदाहरण के लिए, मुक्त छंद, गद्य छंद, छंद मुक्त कविता आदि छंद अतुकांत छंद हैं.

छंद के भेद

यहां छंद के तीन भेद दिए गए हैं:

  • मात्रिक छंद: इस प्रकार के छंद में मात्राओं की संख्या और क्रम का निर्धारण किया जाता है.
  • वर्णिक छंद: इस प्रकार के छंद में वर्णों की संख्या और क्रम का निर्धारण किया जाता है.
  • मुक्तक छंद: इस प्रकार के छंद में मात्राओं या वर्णों की संख्या और क्रम का निर्धारण नहीं किया जाता है.

मात्रिक छंद सबसे आम प्रकार का छंद है. इसमें प्रत्येक चरण में एक निश्चित संख्या में मात्राएं होती हैं. उदाहरण के लिए, दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि छंद मात्रिक छंद हैं.

वर्णिक छंद में प्रत्येक चरण में एक निश्चित संख्या में वर्ण होते हैं. उदाहरण के लिए, सोरठा, कुण्डलिया, हरिगीतिका आदि छंद वर्णिक छंद हैं.

मुक्तक छंद में मात्राओं या वर्णों की संख्या और क्रम का निर्धारण नहीं किया जाता है. उदाहरण के लिए, गद्य छंद, छंद मुक्त कविता आदि छंद मुक्तक छंद हैं.

छंद का प्रकार कविता के भाव और विषय के अनुसार निर्धारित किया जाता है. उदाहरण के लिए, वीरता के विषय पर लिखी गई कविता में मात्रिक छंद का उपयोग किया जा सकता है, जबकि प्रेम के विषय पर लिखी गई कविता में वर्णिक छंद का उपयोग किया जा सकता है.

1. मात्रिक छंद (Matrik Chhand ki Paribhasha)

यहां मात्रिक छंद का पुनर्लेखन है:

  • मात्रिक छंद: मात्रिक छंद वह छंद है जिसमें मात्राओं की संख्या और क्रम का निर्धारण किया जाता है. वर्णों के लघु और गुरु के क्रम का ध्यान नहीं रखा जाता है.

मात्रिक छंद सबसे आम प्रकार का छंद है. इसमें प्रत्येक चरण में एक निश्चित संख्या में मात्राएं होती हैं. उदाहरण के लिए, दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि छंद मात्रिक छंद हैं.

मात्रिक छंदों को लिखने के लिए, कवि को शब्दों को इस तरह से व्यवस्थित करना चाहिए कि वे एक निश्चित संख्या में मात्राएं हों. उदाहरण के लिए, यदि छंद में प्रत्येक चरण में 12 मात्राएं होनी चाहिए, तो कवि को ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए जो 12 मात्राएं हों.

मात्रिक छंदों को पढ़ने और सुनने में आसान होता है. वे कविता को एक सुंदर और प्रभावशाली बनाते हैं.

मात्रिक छंद के भेद

  • सम मात्रिक छंद: सम मात्रिक छंद वह छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में समान संख्या में मात्राएं होती हैं. उदाहरण के लिए, दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि छंद सम मात्रिक छंद हैं.
  • अर्ध-सम मात्रिक छंद: अर्ध-सम मात्रिक छंद वह छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में समान संख्या में मात्राएं नहीं होती हैं, लेकिन दो चरणों में मात्राओं की कुल संख्या समान होती है. उदाहरण के लिए, सोरठा, कुण्डलिया, हरिगीतिका आदि छंद अर्ध-सम मात्रिक छंद हैं.
  • विषम मात्रिक छंद: विषम मात्रिक छंद वह छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में समान संख्या में मात्राएं नहीं होती हैं, और दो चरणों में मात्राओं की कुल संख्या भी समान नहीं होती है. उदाहरण के लिए, गीतिका, छंद मुक्त कविता आदि छंद विषम मात्रिक छंद हैं.

मात्रिक छंदों को पढ़ने और सुनने में आसान होता है. वे कविता को एक सुंदर और प्रभावशाली बनाते हैं.

  • सम मात्रिक छंद: सम मात्रिक छंद वह छंद है जिसमें प्रत्येक चरण में समान संख्या में मात्राएं और वर्णों होती हैं. उदाहरण के लिए, दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि छंद सम मात्रिक छंद हैं.

सम मात्रिक छंदों को लिखने के लिए, कवि को शब्दों को इस तरह से व्यवस्थित करना चाहिए कि वे एक निश्चित संख्या में मात्राएं और वर्णों हों. उदाहरण के लिए, यदि छंद में प्रत्येक चरण में 12 मात्राएं और 12 वर्ण होने चाहिए, तो कवि को ऐसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए जो 12 मात्राएं और 12 वर्ण हों.

सम मात्रिक छंदों को पढ़ने और सुनने में आसान होता है. वे कविता को एक सुंदर और प्रभावशाली बनाते हैं.

सम मात्रिक छंद का परिचय | Introduction to metrical rhyme

  • चौपाई (16 मात्राएं)
  • रोला (24 मात्राएं)
  • गीतिका (26 मात्राएं)
  • हरिगीतिका (28 मात्राएं)
  • अहीर (11 मात्राएं)
  • तोमर (12 मात्राएं)
  • आल्हा या वीर (31 मात्राएं)
  • दिगपाल (24 मात्राएं)
  • रूपमाला (24 मात्राएं)
  • लावनी (22 मात्राएं)
  • तांटक (30 मात्राएं)
  • सार (28 मात्राएं)

अर्द्ध-सम मात्रिक छंद वे छंद हैं जिनके पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राओं या वर्णों में समानता होती है. उदाहरण के लिए, चौपाई एक अर्द्ध-सम मात्रिक छंद है क्योंकि इसके पहले और तीसरे चरणों में 16 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरणों में 16 मात्राएं होती हैं.

अर्द्ध-सम मात्रिक छंद का परिचय

  • दोहा एक अर्द्ध-सम मात्रिक छंद है जिसमें दो चरण होते हैं. पहले चरण में 13 मात्राएं और दूसरे चरण में 11 मात्राएं होती हैं. दोहे का उपयोग अक्सर लोकगीतों, कहावतों और कविताओं में किया जाता है.
  • सोरठा एक अर्द्ध-सम मात्रिक छंद है जिसमें दो चरण होते हैं. पहले चरण में 11 मात्राएं और दूसरे चरण में 13 मात्राएं होती हैं. सोरठा का उपयोग अक्सर धार्मिक कविताओं और गीतात्मक कविताओं में किया जाता है.
  • बरवै एक सम मात्रिक छंद है जिसमें दो चरण होते हैं. पहले चरण में 12 मात्राएं और दूसरे चरण में 7 मात्राएं होती हैं. बरवै का उपयोग अक्सर प्रेम कविताओं और रोमांटिक कविताओं में किया जाता है.
  • उल्लाला एक सम मात्रिक छंद है जिसमें दो चरण होते हैं. पहले चरण में 15 मात्राएं और दूसरे चरण में 13 मात्राएं होती हैं. उल्लाला का उपयोग अक्सर धार्मिक कविताओं और गीतात्मक कविताओं में किया जाता है.
  • विषम मात्रिक छंद वे छंद हैं जिनमें चार से अधिक छह चरण होते हैं, और प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या समान नहीं होती है.

उदाहरण के लिए, कुंडलिया छंद एक विषम मात्रिक छंद है जिसमें छह चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 13 मात्राएं होती हैं, लेकिन चरण की लय प्रत्येक चरण में अलग होती है.

मुझे आशा है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी.

विषम मात्रिक छंद का परिचय

  • कुंडलिया छंद दोहे और रोले के संयोजन से बनता है. इसमें छह चरण होते हैं, जिनमें से पहले दो दोहे के होते हैं, और अगले चार रोले के होते हैं.
  • छप्पय छंद रोले और उल्लाले के संयोजन से बनता है. इसमें छह चरण होते हैं, जिनमें से पहले दो रोले के होते हैं, और अगले चार उल्लाले के होते हैं.

प्रमुख मात्रिक छंदों का परिचय

1. चौपाई छंद10. उल्लाला छंद
2. दोहा छंद11. वीर या आल्हा छंद
3. सोरठा छंद12. तोमर छंद
4. रोला छंद13. अहीर छंद
5. कुण्डलिया छंद14. रूपमाला छंद
6. हरिगीतिका छंद15. तांटक छंद
7. बरवै छंद16. दिगपाल छंद
8. गीतिका छंद17. लावनी छंद
9. छप्पय छंद18. सार छंद

(1). चौपाई छंद की परिभाषा


ज़रूर. यहाँ एक वैकल्पिक पाठ दिया गया है:

चौपाई एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती हैं. पहले चरण की तुक दूसरे चरण से और तीसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है. चरण के अंत में जगण (ISI) और तगण (SSI) का प्रयोग नहीं होता है. अर्थात् चरण के अंतिम दो वर्ण गुरु-लघु (SI) नहीं होते हैं.

उदाहरण:

  • देखो, यहाँ एक चौपाई है:
चौपाई एक सम मात्रिक छंद है,
जिसमें चार चरण होते हैं.
प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती हैं,
और अंत में यति होती है.

I I I S I S I I I I S I
निरखि सिद्ध साधक अनुरागे।
सहज सनेहु सराहन लागे।।
होत न भूलत भाउ भरत को।
अचर-सचर चर-अचर करत को।।

(2). दोहा छंद की परिभाषा

सोरठा एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं. पहले चरण की तुक तीसरे चरण से और दूसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है. चरण के अंत में यति होती है. विषम चरण के अंत में लघु (।) होना चाहिए. तथा सम चरण के आरंभ में जगण (ISI) नहीं होना चाहिए.

उदाहरण:

  • देखो, यहाँ एक सोरठा है:

सोरठा एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. प्रथम और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं.

(3). सोरठा छंद की परिभाषा

सोरठा एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं. पहले चरण की तुक तीसरे चरण से और दूसरे चरण की तुक चौथे चरण से मिलती है. चरण के अंत में यति होती है. विषम चरण के अंत में लघु (।) होना चाहिए. तथा सम चरण के आरंभ में जगण (ISI) नहीं होना चाहिए.

उदाहरण:

सोरठा एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है, जो दोहे का उल्टा होता है. पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं.

S I S I I I S I I S I I I I I S I I I
कुंद इंद सम देह, उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन।।

(4). रोला छंद की परिभाषा

रोला एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण में 11 मात्राएं और तीसरे और चौथे चरण में 13 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण की तुक मिलती है, और तीसरे और चौथे चरण की तुक मिलती है. चरण के अंत में दो गुरु (SS) या दो लघु (।।) वर्ण होते हैं.

उदाहरण:

रोला एक सम मात्रिक छंद है, जो चार चरण में विभाजित है. प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं, और 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है.

I I I I S S I I I S I S S I I I I S
नित नव लीला ललित, ठानि गोलोक अजिर में।
रमत राधिका संग, रास रस रंग रुचिर में।।

(5). कुण्डलिया छंद की परिभाषा

कुण्डलिया एक विषम मात्रिक संयुक्त छंद है जिसमें छह चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं. कुण्डलिया छंद दोहे और रोले के संयोजन से बनता है. दोहे का चौथा चरण रोले के पहले चरण में दोहराया जाता है, और दोहे का पहला शब्द रोले के अंत में आता है. इस प्रकार, कुण्डलिया का प्रारंभ जिस शब्द से होता है, उसी शब्द से इसका अंत भी होता है.

यहाँ एक कुण्डलिया छंद का उदाहरण दिया गया है:

दोहा:

क्षितिज पर चढ़ते हुए सूरज की किरणों ने सारा आकाश को सुनहरा बना दिया.

रोला:

सूरज की किरणें, आकाश को सुनहरा बना रही हैं.

कुण्डलिया का प्रारंभ “सूरज” शब्द से होता है, और इसका अंत भी “सूरज” शब्द पर होता है. कुण्डलिया छंद दोहे और रोले के संयोजन से बनता है, और दोहे का चौथा चरण रोले के पहले चरण में दोहराया जाता है, और दोहे का पहला शब्द रोले के अंत में आता है.

SS SI I S I S I I S I I I I S I
साईं वैर न कीजिए, गुरु पंडित कवि यार।
बेटा वनिता पौरिया, यज्ञ करावन हार।।
यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई।
विप्र पड़ोसी वैध आपुनौ, तपै रसोई।।
कह गिरधिर कविराय, जुगत सो यह चलि आई।
इस तेरह को तरह दिए, बनि आवै साई।।

(6). हरिगीतिका छंद की परिभाषा


ज़रूर. यहाँ एक वैकल्पिक पाठ दिया गया है:

हरिगीतिका एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती हैं. पहले चरण में 16 मात्राएं, दूसरे चरण में 12 मात्राएं, तीसरे चरण में 16 मात्राएं और चौथे चरण में 12 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण की तुक मिलती है, और तीसरे और चौथे चरण की तुक मिलती है. चरण के अंत में लघु-गुरु (IS) का प्रयोग होता है.

यहाँ एक हरिगीतिका छंद का उदाहरण दिया गया है:

हरि के गीत गाओ, और उनका नाम लो. वे ही तुम्हें बचाएंगे, और तुम्हें सुख देंगे.

I I S I S S S I S S S I I I S I I I S
कहते हुए यो उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानों, हो गए पंकज नए।।

(7). बरवै छंद की परिभाषा

बरवै एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. पहले और तीसरे चरण में 12-12 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 7-7 मात्राएं होती हैं. चरण के अंत में यति होती है. दूसरे और चौथे चरण के अंत में जगण (ISI) या तगण (SSI) के होने से इस छंद की मिठास बढ़ जाती है.

यहाँ एक बरवै छंद का उदाहरण दिया गया है:

बरवै एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. पहले और तीसरे चरण में 12-12 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 7-7 मात्राएं होती हैं.

S I I I I S I I I I I I I I S I
चंपक हरवा अंग मिलि, अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरै, जब कुॅंभिलाय।।

(8). गीतिका छंद की परिभाषा

गीतिका एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 26 मात्राएं होती हैं. पहले चरण में 14 मात्राएं, दूसरे चरण में 12 मात्राएं, तीसरे चरण में 14 मात्राएं और चौथे चरण में 12 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण की तुक मिलती है, और तीसरे और चौथे चरण की तुक मिलती है. चरण के अंत में लघु-गुरु (IS) का प्रयोग होता है.

यहाँ एक गीतिका छंद का उदाहरण दिया गया है:

मैं एक गीतिका लिख रहा हूँ, जिसमें चार चरण हैं. प्रत्येक चरण में 26 मात्राएं हैं, और प्रत्येक चरण में 14 और 12 मात्राओं पर यति होती है. चरण के अन्त में लघु-गुरु (IS) का प्रयोग होता है.

S I S S S I S S S I S I I S I S
साधु भक्तों में सुयोगी, संयमी बढ़ने लगें।
सभ्यता की सीढ़ियों पर, सूरमा चढ़ने लगें।।

(9). छप्पय छंद की परिभाषा


ज़रूर. यहाँ एक वैकल्पिक पाठ दिया गया है:

छप्पय एक विषम मात्रिक छंद है जिसमें छह चरण होते हैं. यह रोला और उल्लाला के संयोजन से बनता है. पहले चार चरण रोले के होते हैं, और अंतिम दो चरण उल्लाला के होते हैं. पहले चार चरणों में 24 मात्राएं होती हैं, जबकि अंतिम दो चरणों में 26 या 28 मात्राएं होती हैं.

यहाँ एक छप्पय छंद का उदाहरण दिया गया है:

रोला:

मैं एक कवि हूँ, और मैं कविताएं लिखना पसंद करता हूँ. मैं कविताएं लिखता हूँ, और मैं लोगों को खुश करता हूँ.

उल्लाला:

मेरी कविताएं, लोगों को खुश करती हैं. मेरी कविताएं, लोगों को हंसाती हैं. मेरी कविताएं, लोगों को रोती हैं. मेरी कविताएं, लोगों को प्यार करती हैं.

I S I S I I S I I I I S I I S I I S
जहां स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में।
जहां न बाधक बने सबल निबलो के सुख में।।
सबको जहां समान निजोन्नति का अवसर हो।
शांति दायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो।।
सब भांति सुशासित हों जहां समता के सुखकर नियम।
बस उसी स्वशासित देश में जागे हे जगदीश हम।।

(10). उल्लाला छंद की परिभाषा

उल्लाला एक अर्ध-सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. पहले और तीसरे चरण में 15-15 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं. यति चरण के अंत में होती है. चरण के अंत में लघु-गुरु (IS) आवश्यक है.

यहाँ एक उल्लाला छंद का उदाहरण दिया गया है:

उल्लाला एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. पहले और तीसरे चरण में 15-15 मात्राएं होती हैं, जबकि दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं. चरण के अंत में यति होती है, और चरण के अंत में लघु-गुरु (IS) आवश्यक है.

S I I I S I S S I S I I S I I S I S S
हे शरण दायिनी देवि तू, करती सबकी रक्षा है।
तू मातृ भूमि संतान हम, तू जननी तू प्राण है।।

(11). वीर या आल्हा छंद की परिभाषा


ज़रूर. यहाँ एक वैकल्पिक पाठ दिया गया है:

ये एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 31 मात्राएं होती हैं. पहले चरण में 16 मात्राएं, दूसरे चरण में 15 मात्राएं, तीसरे चरण में 16 मात्राएं और चौथे चरण में 15 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण की तुक मिलती है, और तीसरे और चौथे चरण की तुक मिलती है. चरण के अंत में गुरु-लघु (SI) का प्रयोग होता है. इसे आल्हा या मात्रिक सवैया छंद भी कहते हैं.

यहाँ एक ये छंद का उदाहरण दिया गया है:

ये एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 31 मात्राएं हैं, और 16 और 15 मात्राओं पर यति होती है. चरण के अंत में गुरु-लघु (SI) का प्रयोग होता है.

S S S I I I S I S S I I S S I S I S S I
आल्हा ऊथल बड़े लड़ेया, पहुंचे कूदि-कूदि आकाश।
एक फूंक माबेरी उड़िगे, के डारिनि बैरी का नाश।।

(12). तोमर छंद की परिभाषा

तोमर एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 12 मात्राएं होती हैं. यति चरण के अंत में होती है. चरण के अंत में गुरु-लघु (SI) होने आवश्यक है.

यहाँ एक तोमर छंद का उदाहरण दिया गया है:

मैं एक कवि हूं, और मैं कविताएं लिखना पसंद करता हूं. मैं कविताएं लिखता हूं, और मैं लोगों को खुश करता हूं. मैं लोगों को खुश करता हूं, और मैं उन्हें अपने साथ जोड़ता हूं.

S I S S I I S I S I I I I I I I S I
तो चले वान कराल। फुंकरत जनु बहु ब्याल।।
कोपउ समर श्रीराम। चल बिशिख निसित निकाम।।

(13). अहीर छंद की परिभाषा

यहाँ एक वैकल्पिक पाठ दिया गया है:

अहीर एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 11 मात्राएं होती है. चरण के अंत में यति होती है. चरण के अंत में गुरु-लघु (SI) का प्रयोग होता है.

यहाँ एक अहीर छंद का उदाहरण दिया गया है:

अहीर एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 11 मात्राएं हैं, और चरण के अंत में यति होती है. चरण के अंत में गुरु-लघु (SI) का प्रयोग होता है.

S I I S I I S I S I S I S S I
सुंदर छंद अहीर। प्रेम युक्त ये तीर।।
खिल उठते मन मीत। रचते मोहक गीत।।

(14). रूपमाला छंद की परिभाषा

रूपमाला एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं. पहले चरण में 14 मात्राएं, दूसरे चरण में 10 मात्राएं, तीसरे चरण में 14 मात्राएं और चौथे चरण में 10 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण की तुक मिलती है, और तीसरे और चौथे चरण की तुक मिलती है. चरण के अंत में गुरु-लघु (SI) होते है.

यहाँ एक रूपमाला छंद का उदाहरण दिया गया है:

रूपमाला एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं हैं, और 14 और 10 मात्राओं पर यति होती है. चरण के अंत में गुरु-लघु (SI) होते है.

S I I I I I S I S S I I I S I I S I
बोझ अब उठता नहीं है, बढ़ गया व्यभिचार।
हर गली कहने लगी है, आपसी ही प्यार।।
घर सिकुड़ता जा रहा है, क्रोध की बौछार।
जल रही है धूप आंगन, तुलसी है बीमार।।

(15). तांटक छंद की परिभाषा

तांटक एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 30 मात्राएं होती हैं. पहले चरण में 16 मात्राएं, दूसरे चरण में 14 मात्राएं, तीसरे चरण में 16 मात्राएं और चौथे चरण में 14 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण की तुक मिलती है, और तीसरे और चौथे चरण की तुक मिलती है. चरण के अंत में लघु-गुरु (IS) होता है.

यहाँ एक तांटक छंद का उदाहरण दिया गया है:

तांटक एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 30 मात्राएं हैं, और 16 और 14 मात्राओं पर यति होती है. चरण के अंत में लघु-गुरु (IS) होता है.

S S S I I S I S I S I I S I I I S S I S
आए हैं लड़ने चुनाव जो, सब्जबाग दिखलाए क्यों।
झूठे बादे करते नेता, किचित नहीं निभाए क्यों।।

(16). दिगपाल छंद की परिभाषा

दिगपाल एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण में 12 मात्राएं, और तीसरे और चौथे चरण में 12 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण की तुक मिलती है, और तीसरे और चौथे चरण की तुक मिलती है. चरण के अंत में दो गुरु (SS) होते हैं.

यहाँ एक दिगपाल छंद का उदाहरण दिया गया है:

दिगपाल एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं हैं, और 12-12 मात्राओं के बाद यति होती है. दो चरणों के अंत में तुक होती है, और चरण के अंत में दो गुरु (SS) होते हैं.

S I I I I I I S I I S I I I I I I S S
मीन मकट जल व्यालनि, कीचल चिलक सुहाई।
सो जानू चपला चमच, माति चंचल छवि छाई।।

(17). लावनी छंद की परिभाषा

लावनी एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 22 मात्राएं होती हैं. चरण के अंत में यति होती है. चरण के अंत में गुरु का प्रयोग होता है.

यहाँ एक लावनी छंद का उदाहरण दिया गया है:

लावनी एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 22 मात्राएं हैं, और चरण के अंत में यति होती है. चरण के अंत में गुरु का प्रयोग होता है.

S I I S I I S I I S I I I I S S
स्वाति घटा घहराति मुक्ति पनिप सपूरी।
कथो आवति झुकित शुभ आभा रचि रुरी।।

(18). सार छंद की परिभाषा


ज़रूर. यहाँ एक वैकल्पिक पाठ दिया गया है:

सार एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण में 16 मात्राएं, और तीसरे और चौथे चरण में 12 मात्राएं होती हैं. पहले और दूसरे चरण की तुक मिलती है, और तीसरे और चौथे चरण की तुक मिलती है. चरण के अंत में दो गुरु (SS) या दो लघु (LL) होते हैं. इसे ललित पद या छन्न पकैया छंद भी कहते हैं.

यहाँ एक सार छंद का उदाहरण दिया गया है:

सार एक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं हैं, और 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है. चरण के अंत में दो गुरु (SS) या दो लघु (LL) होते हैं.

SS S I I S I I S S I I I I I I S S S
नारी जीवन की फुलवारी, अद्भुत इसकी माया।
पत्नी बनकर संतति देकर, अपना मान बढ़ाया।।

2. वर्णिक छंद (Varnik Chhand ki Paribhasha)

वर्णिक छंद, वर्णों की गणना के आधार पर बनाए जाते हैं. प्रत्येक चरण में वर्णों की एक निश्चित संख्या होती है और वर्णों के लघु-गुरु स्वर के क्रम का एक निश्चित क्रम होता है.

वर्णिक छंद के भेद

ज़रूर, यहाँ एक संक्षिप्त संस्करण दिया गया है:

वर्णिक छंद दो प्रकार के होते हैं: साधारण और दण्डक.

  • साधारण वर्णिक छंद में प्रत्येक चरण में 26 वर्ण होते हैं.
  • दण्डक वर्णिक छंद में प्रत्येक चरण में 26 से अधिक वर्ण होते हैं.

प्रमुख वर्णिक छंदों का परिचय

1. इन्द्रवज्रा छंद11.शार्दूल विक्रीडित छंद
2. उपेन्द्रवज्रा छंद12. शिखरिणी छंद
3. बसन्ततिलका छंद13. मनहर अथवा कवित्त छंद
4. द्रुतविलम्बित छंद14. सवैया छंद
5. मन्दाक्रान्ता छंद15. मत्तगयन्द सवैया छंद
6. मालिनी छंद16. सुन्दरी सवैया छंद
7. शालिनी छंद17. सुमुखी सवैया छंद
8. भुजंगी छंद18. दुर्मिल सवैया छंद
9. वंशस्थ छंद19. मदिरा सवैया छंद
10. तोटक छंद_

(1). इन्द्रवज्रा छंद की परिभाषा

इंद्रवज्रा एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो दो तगण (SSI), एक जगण (ISI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

इन्द्रवज्रा छंद में, प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो दो तगण (SSI), एक जगण (ISI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है.

S S I S S I I S I S S
जागो उठो भारत देश वासी।
आलस्य छोड़ो न बनो बिलासी।।
ऊंचे उठो दिव्यकला दिखाओ।
संसार में पूज्य पुनः कहलाओं।।

(2). उपेन्द्रवज्रा छंद की परिभाषा

उपेंद्रवज्रा एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो एक जगण (ISI), एक तगण (SSI), एक जगण (ISI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

उपेंद्रवज्रा छंद में, प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो एक जगण (ISI), एक तगण (SSI), एक जगण (ISI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है.

I S I S S I I S I S S
कहीं वहीं भूल न जाइएगा।
पधारिए शत्वर आइएगा।।
बनें स्वयं शत्पथ सौख्यकारी।
सुकर्म हो विघ्न विपत्ति हारी।।

(3). बसन्ततिलका छंद की परिभाषा

बसंततिलका एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते हैं, जो एक तगण (SSI), एक भगण (SII), दो जगण (ISI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है. इसे ‘सिद्धोन्नता’ भी कहते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

बसंततिलका छंद में, प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते हैं, जो एक तगण (SSI), एक भगण (SII), दो जगण (ISI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है.

S S I S I I I S I I S I S S
जो राजपंथ वन भूतल में बना था।
धीरे उसी पर सधा रथ जा रहा था।।
हों-हों विमुग्ध रुचि से अवलोकते थे।
ऊधों छटा विपिन की अति ही अनूठी।।

(4). द्रुतविलम्बित छंद की परिभाषा

द्रुतविलंबित एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं, जो एक नगण (III), दो भगण (SII) और अंत में एक रगण (SIS) से बने होते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

द्रुतविलंबित छंद में, प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं, जो एक नगण (III), दो भगण (SII) और अंत में एक रगण (SIS) से बने होते हैं.

I I I S I I S I I S I S
दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल बल्लभ की प्रभा।।

(5). मन्दाक्रान्ता छंद की परिभाषा


ज़रूर, यहां संशोधित संस्करण है:

मंदाक्रांता एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं, जो दो भगण (SII), एक नगण (III), दो तगण (SSI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 10वें और 7वें वर्ण पर यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

मंदाक्रांता छंद में, प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं, जो दो भगण (SII), एक नगण (III), दो तगण (SSI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 10वें और 7वें वर्ण पर यति होती है.

S I I S I I I I I S S I S S I S S
कोई पत्ता नवल तरु का, पीत जो हो रहा हो।
तो प्यारे के दृग युगल के सामने ला उसे ही।।
धीरे-धीरे सम्भल रखना और उन्हें यों बताना।
पीला होना प्रबल दुःख से प्रेषिता सा हमारा।।

(6). मालिनी छंद की परिभाषा

मालिनी एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते हैं, जो दो नगण (III), एक भगण (SII) और दो यगण (ISS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 7वें और 8वें वर्ण पर यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

मालिनी छंद में, प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते हैं, जो दो नगण (III), एक भगण (SII) और दो यगण (ISS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 7वें और 8वें वर्ण पर यति होती है.

I I I I I I S I I I S S I S S
पल-पल जिसके मैं पंथ को देखती थी।
निशिदिन जिसके ही ध्यान में थी बिताती।।

(7). शालिनी छंद की परिभाषा

शालिनी छंद एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो एक मगण (SSS), दो तगण (SSI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 4वें और 7वें वर्ण पर यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

शालिनी छंद में, प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो एक मगण (SSS), दो तगण (SSI) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 4वें और 7वें वर्ण पर यति होती है.

S S S S S I S S I S S
कैसी-कैसी ठोकरा खा रहे हो।
कैसी-कैसी यातना पा रहे हो।।

(8). भुजंगी छंद की परिभाषा

भुजंगी छंद एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो तीन यगण (ISS), एक लघु (I) और एक गुरु (S) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

भुजंगी छंद में, प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं, जो तीन यगण (ISS), एक लघु (I) और एक गुरु (S) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है.

I S S I S S I S S I S
यही वाटिका थी यही थी मही।
यही चंद्र था चांदनी थी यही।।
यही बल्लकी थी लिए गोद में।
उसे छेड़ती थी महामोद में।।

(9). वंशस्थ छंद की परिभाषा

वंशस्थ एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं, जो एक जगण (ISI), एक तगण (SSI), एक जगण (ISI) और अंत में एक रगण (SIS) वर्णों से बने होते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

वंशस्थ छंद में, प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं, जो एक जगण (ISI), एक तगण (SSI), एक जगण (ISI) और अंत में एक रगण (SIS) वर्णों से बने होते हैं.

I S I S S I I S I S I S
पुकार मेरी प्रभु से यही कहूं।
सुधार लू मैं मन को सही कहूं।।
सुनीत सेवा मनु की अदा करूं।
नवीन धारा गुन की हिया भरूं।।

(10). तोटक छंद की परिभाषा

तोटक एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं, जो चार सगण (IIS) वर्णों से बने होते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

तोटक छंद में, प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं, जो चार सगण (IIS) वर्णों से बने होते हैं.

I I S I I S I I S I I S
मम जीवन मीन मिमं पतितं।
मरु घोर भुवीह सुवीह महो।।

(11). शार्दूल विक्रीडित छंद की परिभाषा

ये एक वर्णिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते हैं, जो एक मगण (SSS), एक सगण (IIS), एक जगण (ISI), एक सगण (IIS), दो तगण (SSI) और अंत में एक गुरु (S) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 12वें और 7वें वर्ण पर यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

ये छंद में, प्रत्येक चरण में 19 वर्ण होते हैं, जो एक मगण (SSS), एक सगण (IIS), एक जगण (ISI), एक सगण (IIS), दो तगण (SSI) और अंत में एक गुरु (S) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 12वें और 7वें वर्ण पर यति होती है.

S S S I I S I S I I I S S S I S S I S
आ बैठी उर मोहजन्य जड़ता, विधा विदा हो गई।
पाई कायरता मलीन मन को, हा वीरता खो गई।।

(12). शिखरिणी छंद की परिभाषा


शिखरिणी एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं, जो एक यगण (ISS), एक मगण (SSS), एक नगण (III), एक सगण (IIS), एक भगण (SII) और अंत में लघु-गुरु (IS) वर्णों से बने होते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

शिखरिणी छंद में, प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं, जो एक यगण (ISS), एक मगण (SSS), एक नगण (III), एक सगण (IIS), एक भगण (SII) और अंत में लघु-गुरु (IS) वर्णों से बने होते हैं.

I S S S S S I I I I I S S I I I S
घटा कैसी प्यारी प्रकृति तिय के चंद्रमुख की।
नया नीला औढ़े बसन चटकीला गगन की।।

(13). मनहर अथवा कवित्त छंद की परिभाषा

मनहर या कवित्त छंद एक वर्णिक दण्डक वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं, जो 16 और 15 वर्णों के दो समूहों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के अंत में एक गुरु वर्ण का होना आवश्यक है.

इस छंद को निम्न नामों से भी जाना जाता है:

  • देवधनाक्षरी छंद
  • घनाक्षरी छंद
  • मनहरण छंद
  • दण्डक छंद
  • रूपघनाक्षरी छंद

यह छंद गीत, कविता और नाटक लिखने के लिए बहुत लोकप्रिय है.

यहां एक उदाहरण है:

  • मनहर छंद

मनहर छंद एक सुंदर छंद है, यह चार चरणों में लिखा जाता है. प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं, और प्रत्येक चरण में एक गुरु वर्ण होता है.

मनहर छंद का उपयोग गीत, कविता और नाटक लिखने के लिए किया जाता है, और यह एक बहुत ही लोकप्रिय छंद है.

(14). सवैया छंद की परिभाषा

सवैया एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है. इसके प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं. इस छंद में कोई एक गण ही अनेक बार आता है. सवैया के अनेक प्रकार होते हैं.

दूसरे शब्दों में – 22 से 26 वर्णों तक के वर्ण वृत्तों को ‘सवैया छंद’ कहते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

बिना विचारे जब काम होगा, कभी न अच्छा परिणाम होगा. पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपन नाम सुदामा.

यह सवैया छंद का एक उदाहरण है, जिसमें प्रत्येक चरण में 22 वर्ण हैं और प्रत्येक चरण में एक ही गण आता है. इस उदाहरण में, प्रत्येक चरण में एक सगण (IIS) आता है.

सवैया छंद का उपयोग कविता, गीत और नाटक लिखने के लिए किया जाता है. यह एक बहुत ही लोकप्रिय छंद है और इसका उपयोग कई प्रसिद्ध कवियों और लेखकों ने किया है.

सवैया छंद के भेद

सवैया छंद के कुछ प्रमुख भेद इस प्रकार हैं:

  • मत्तगयन्द सवैया छंद: यह सवैया छंद का सबसे प्राचीन रूप है. इस छंद में प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते हैं और प्रत्येक चरण में एक ही गण आता है. इस उदाहरण में, प्रत्येक चरण में एक सगण (IIS) आता है.
  • सुन्दरी सवैया छंद: यह सवैया छंद का एक प्रकार है, जिसमें प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते हैं और प्रत्येक चरण में दो गण आते हैं. इस उदाहरण में, प्रत्येक चरण में एक सगण (IIS) और एक तगण (SSI) आता है.
  • सुमुखी सवैया छंद: यह सवैया छंद का एक प्रकार है, जिसमें प्रत्येक चरण में 26 वर्ण होते हैं और प्रत्येक चरण में तीन गण आते हैं. इस उदाहरण में, प्रत्येक चरण में एक सगण (IIS), एक तगण (SSI) और एक नगण (III) आता है.
  • दुर्मिल सवैया छंद: यह सवैया छंद का एक प्रकार है, जिसमें प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते हैं और प्रत्येक चरण में तीन गण आते हैं. इस उदाहरण में, प्रत्येक चरण में एक सगण (IIS), एक तगण (SSI) और एक नगण (III) आता है.
  • मदिरा सवैया छंद: यह सवैया छंद का एक प्रकार है, जिसमें प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते हैं और प्रत्येक चरण में चार गण आते हैं. इस उदाहरण में, प्रत्येक चरण में एक सगण (IIS), एक तगण (SSI), एक नगण (III) और एक भगण (SII) आता है.

(1). मत्तगयन्द सवैया छंद की परिभाषा

मत्तगयन्द एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं, जो सात भगण (SII) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 12वें और 11वें वर्ण पर यति होती है. अतः इसे ‘इन्दव’ अथवा ‘मालती’ छंद भी कहते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

मत्तगयन्द छंद में, प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं, जो सात भगण (SII) और दो गुरु (SS) वर्णों से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 12वें और 11वें वर्ण पर यति होती है.

S I I S I I S I I S I I S I I S I I S I I S S
या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूॅंपुर को तजि डारौं।
आठहुॅं सिद्धि नवों निधि को सुख, नन्द की धेनु चराय बिसारौं।।
रसखान कबौं इन आंखिन तें, बज्र के वन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हूॅं कलधौत के धाम,करील की कुंजन ऊपर वारौं।।

(2). सुन्दरी सवैया छंद की परिभाषा

सुन्दरी एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते हैं, जो आठ सगण (IIS) और अंत में एक गुरु (S) वर्ण से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 12वें और 13वें वर्ण पर यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

सुन्दरी छंद में, प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते हैं, जो आठ सगण (IIS) और अंत में एक गुरु (S) वर्ण से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 12वें और 13वें वर्ण पर यति होती है.

I I S I I S I I S I I S I I S I I S I I S I I S S
सुख शांति रहे सब और सदा, अविवेक तथा अघ पास न आवै।
गुणशील तथा बल बुद्धि बड़े, हठ वैर विरोध घटै मिटि जावै।।
कहे मंगल दारिद दूर भगे, जग में अति मोद सदा सर सावै।
कवि पंडित सूरन बीरन से, विलसे यह देश सदा सुख पावै।।

(3). सुमुखी सवैया छंद की परिभाषा

सुमुखी एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं, जो सात जगण (ISI) और चरण के अन्त में एक लघु (I) और एक गुरु (S) वर्ण से बने होते हैं. अतः इसे ‘मल्लिका छंद’ भी कहते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

सुमुखी छंद में, प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं, जो सात जगण (ISI) और चरण के अन्त में एक लघु (I) और एक गुरु (S) वर्ण से बने होते हैं.

I S I I S I I S I I S I I S I I S I I S I I S
जु लोग लगैं सिय रामहि साथ चलैं वन माहि फिरैं न चहैं।
हमें प्रभु आयसु देहु चलैं रउरे यो करि जोरि कहैं।।
चलें कछु दूरि नमै पगधूरि भले फल जन्म अनेक लहैं।
सिया सुमुखी हरि फेरि जिन्हें बहु भाॅंतिनि ते समुझाइ रहैं।।

(4). दुर्मिल सवैया छंद की परिभाषा

दुर्मिल एक वर्णिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते हैं, जो आठ सगण (IIS) से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 12वें और 12वें वर्ण पर यति होती है. इसे ‘चन्द्रकला’ भी कहते हैं.

यहां एक उदाहरण है:

दुर्मिल छंद में, प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते हैं, जो आठ सगण (IIS) से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 12वें और 12वें वर्ण पर यति होती है.

I I S I I S I I S I I S I I S I I S I I S I I S
पुरते निकसी रघुबीर वधु, छरि धीर दएमग में डग द्वैं।
झलकी भरि भाल कनी जलकी, पुट सूख गए मधुरा धर व्हैं।।
फिरि बुझति है चलनो अब कैतिक पने कुटी कटि है कित व्हैं।
तियकी लखि आतुरता पियकी, आंखिया अति चारु चली जल व्हैं।।

(5). मदिरा सवैया छंद की परिभाषा

ये एक वर्णिक समवर्ण वृत छंद है जिसमें चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते हैं, जो सात भगण (SII) और चरण के अंत में लघु-गुरु (IS) वर्ण से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 10वें और 12वें वर्ण पर यति होती है.

यहां एक उदाहरण है:

ये छंद में, प्रत्येक चरण में 22 वर्ण होते हैं, जो सात भगण (SII) और चरण के अंत में लघु-गुरु (IS) वर्ण से बने होते हैं. प्रत्येक चरण के 10वें और 12वें वर्ण पर यति होती है.

S I I S I I S I I S I I S I I S I I S I I S
सिंधु तयो उनको बनरा, तुम पै धनु रेख गयी न तरी।
वानर बांधत सोन बॅंध्यों उन वारिधि बाॅंधिक वाट करी।।
श्रीरघुनाथ प्रताप कि बात तुम्हें दस कठ न जानि परी।
तेलहु तूलहु पूंछ जरी न जरी-जरी लंक जराइ जरी।।

3. मुक्तक छंद (Muktak Chhand ki Paribhasha)

मुक्तक छंद वह छंद है जिसमें वर्ण और मात्राओं की गणना नहीं होती है. इस छंद में प्रत्येक चरण में वर्णों की मात्रा या क्रम समान नहीं होता है और न ही मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था होती है. मुक्तक छंद का उदाहरण है रहीम के दोहे “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।”

मुक्तक छंद हिंदी में स्वतंत्र रूप से लिखे जाने वाले छंदों का सबसे लोकप्रिय रूप है. इस छंद के प्रेणता सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला माने जाते हैं. निराला ने मुक्तक छंद का प्रयोग अपनी कविताओं में किया और इसे एक नए रूप दिया. उन्होंने मुक्तक छंद को भारतीय भाषा के काव्य में एक नई पहचान दी.

मुक्तक छंद का प्रयोग कविताओं के विभिन्न रूपों में किया जा सकता है, जैसे गीत, कविता और नाटक. यह छंद कवि को अपनी भावनाओं और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अवसर देता है. मुक्तक छंद का प्रयोग कविता को अधिक भावपूर्ण और प्रभावशाली बनाता है.

मुक्तक छंद की विशेषताएं

मुक्तक छंद एक ऐसा छंद है जिसमें प्रत्येक चरण अपने आप में स्वतंत्र होता है. इसमें एक चरण का दूसरे चरण से कोई संबंध नहीं होता है. मुक्तक छंद नियमवध्द नहीं होते हैं. इनमें वर्ण और मात्राओं की गणना नहीं होती है. मुक्तक छंद की विशेषता ही स्वच्छ गति और भावपूर्ण यति विधान होती है. मुक्तक छंद में लय (राग) सदा एक सा नहीं रहता है. इसके चरणों में लय (राग) बदलते रहते हैं.

मुक्तक छंद का प्रयोग कविताओं के विभिन्न रूपों में किया जा सकता है, जैसे गीत, कविता और नाटक. यह छंद कवि को अपनी भावनाओं और विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अवसर देता है. मुक्तक छंद का प्रयोग कविता को अधिक भावपूर्ण और प्रभावशाली बनाता है.

मुक्तक छंद के कुछ उदाहरण हैं:

  • रहीम के दोहे “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।”
  • महादेवी वर्मा की कविता “सांध्य गीत”
  • निराला की कविता “अनामिका”
  • महादेवी वर्मा की कविता “अतिमा”
  • निराला की कविता “उत्तररामचरित”

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